सस्वती विद्या मंदिर हरदा का इतिहास

यह एक सरोवर है, स्मृतियों का सरोवर । असंख्य तरंगे तट पर आकर अनेक संदेश प्रसारित करती है । यह इतिहास है । एक ऐसा  इतिहास उस विद्यालय का जिसने हरदा नगर के शिक्षा क्षेत्र में अपने कर्म कौशल से अनेकों कीर्ति कलश स्थापित किये है । अनुसंधान विज्ञान में ही नहीं अपितु इतिहास में भी होता है। यह अनुसंधान सत्य परक हो तो आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रकाश स्तंभ होता है । हम पूर्ण सत्य का दावा नही करते लेकिन हमारा यह एक प्रयास है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिये एक पहल प्रस्तुत करे जिसकी बुनियाद पर वे आगामी अध्ययन और अनुसंधान कर एक ऐसा इतिहास लिखे जिस पर भावी पीढ़ियां गर्व करें।

गाथा

स्थापना एवं शैशवकाल

यह बात 90 के दशक के पूर्वाद्ध की है, नर्मदापुरम् (होशंगाबाद) जिले की एक तहसील मुख्यालय के रूप में हरदा नगर आकार ले रहा था । वर्तमान में स्थापित कई मौहल्लों एवं बस्तियों का तो अस्तित्व भी नहीं था । मूल रूप से कृषि आधारित जनजीवन था । पुरानी परंपराओं के साथ साथ नवीन विचारों का समावेश भी हमारी सनातन परंपरा है । उसी के अनुसार समाज की स्थिति भी रही ।

विद्याभारती से परिचय

ऐतिहासिक संपदा जीवन मूल्यों एवं चैतन्य सामाजिक परिवेश शुद्ध राजनीति तथा अटूट धार्मिक मान्यताओं एवं सुसंपन्न आर्थिक परिवेश के साथ यह नगर आगे बढ़ रहा था । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्य भी यहां प्रगति पर था। उन्नीसवी शताब्दी का यह सातवाँ दशक था 1976 में आपात काल लगा और संघ से समर्थित विचारधारा के लोगों को जेल जाना पड़ा । हरदा में उस समय से ही संघ के प्रति समर्पित स्वयंसेवकों की विठ्ठल मंदिर शाखा में उपस्थिति रहती थी । सरस्वती शिशु मंदिर के संस्थापक सदस्य एवं प्रथम व्यवस्थापक श्री शालिगराम अग्रवाल वकील साहब भी गिरफ्तार हुए, और वे पौने दो वर्ष तक भोपाल जेल में बंद रहे । वहां उनका संपर्क कई जानीमानी हस्तियों के साथ कुछ नौजवानों से भी हुआ जो सरस्वती विद्या मंदिर के छात्र थे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले संगठन विद्याभारती की विचारधारा से शालिगराम जी अत्यधिक प्रभावित हुए ।

विद्यालय स्थापना का विचार

आपातकाल हटा श्री शालिगराम जी भी जेल से छूटकर गृह नगर वापस आ गए । जेल के जीवन की अविस्मरणीय घटनाएँ सुनाते हुए 80 वर्ष से अधिक की उम्र में आज भी उनकी आँखें चमकने लगती है । जेल के साथियों और वि‌ठ्ठल मंदिर शाखा के स्वयंसेवकों को बीच सरस्वती विद्या मंदिर प्रारंभ करने की चर्चाएं प्रारंभ हो गई । इन चर्चाओं का केन्द्र विठ्ठल मंदिर शाखा तथा गणेश चौक में रहने वाले स्व.श्री भीकाजीराव बेलापुरकर के यहां उनके घर के ओटले पर नित्य जमने वाली बैठकों में हुआ करता था । सभी के मन में विद्यालय प्रारंभ करने को लेकर अत्यंत उत्साह था । यह चिंतन संघनित होता गया, श्रद्धेय शालिगराम वकील साहब बताते है कि उनकी बहिन श्रीमती भूरीबाई अग्रवाल ने कहा की बच्चों के अध्ययन के लिये एक संस्कारवान विद्यालय होना चाहिए । विद्यालय स्थापना के विचार में जिन लोगों का सक्रिय योगदान था उनमें श्री केसरीलाल पांडे, श्री भीकाजीराव बेलापुरकर (शास्त्री जी) श्री देवीप्रसाद अग्रवाल, श्री भालचंद्रराव मजलीकर, श्री बसंतीलाल केजड़ीवाल, श्री रघुनाथराव केकरे, श्री चिंतामण जी वापट, श्री शालिगराम अग्रवाल, श्री दयाशंकर तिवारी, श्रीमती सुशीला रानी मौर्य, श्री शिवनारायण जी टांक और श्री कृष्णकांत जी साकल्ले  आदि थे।

प्रथम औपचारिक बैठक

23 जून 1981 को विद्यालय प्रारंभ करने हेतु प्रथम औपचारिक बैठक श्री शालिगराम अग्रवाल जी वकील साहब के घर पर हुई । जिसमें विद्यालय संचालन करने हेतु एक समिति का गठन किया गया । यह समिति इस प्रकार थी । अध्यक्ष श्री बसंतीलाल जी केजड़ीवाल, कोषाध्यक्ष. श्री रघुनाथराव जी केकरे, सचिव श्री शालिगराम जी अग्रवाल, सहसचिव श्री भालचंद्रराव जी मजलीकर, सदस्य. श्री भीकाजी बेलापुरकर, श्रीमती सुशीलारानी मौर्य, एवं दयाशंकर तिवारी थे ।

विद्यालय की स्थापना

दिनांक 01/07/1981 से विद्यालय प्रारंभ करने की सहमति बनी । विद्यालय हेतु स्थान के लिये श्रद्धेय श्री भीकाजीराव बेलापुरकर ने अपने घर का एक कमरा इस हेतु उपयोग की सहमति प्रदान की । दिनांक 01 जुलाई 1981  का वह दिन अविस्मरणीय है जब प्रथम  आचार्य श्री कैलाश जोशी के आचार्यत्व में 13 भैया बहिनों के साथ विद्यालय विधिवत प्रारंभ हुआ । इस अवसर पर गणमान्य नागरिको भैया बहनों,अभिभावकों की उपस्थिती मे एक संक्षिप्त  उ‌द्घाटन कार्यक्रम हुआ। जिसकी मुख्यवक्ता सौ. शारदा ताई वापट थी

प्रथम कक्षा के भैया बहिन

01 जुलाई 1981 को प्रथम कक्षा में पंजीकृत हुए भैया बहिनों के नाम इस प्रकार है प्रियंका श्री विपिन अग्रवाल, प्रियंका श्री किरण अग्रवाल, सचिन श्री रामकृष्ण अग्रवाल, सचिन श्री सुभाष अग्रवाल, करणसिंह मौर्य, प्रियाली मौर्य चित्तरंजन मीरानी,आशीष सराफ़  नीलू गहलोत, उमेश चदेवा, ऋषि लौवंशी, योगेश साकल्ले और सतीश कावरा ।

विद्यालय भवन का स्थानांतरण

15 दिन शास्त्री जी के घर लगने वाला यह विद्यालय 16 जुलाई 1981 से गदीपुरा  स्थित विठठल मंदिर के सामने श्री गोविंदराव नाईक के मकान में स्थानांतरित हो गया । किराये के इस भवन में तीन कक्ष थे, प्रथम कक्ष में कार्यालय तथा अन्य दो कक्षों में कक्षाएं संचालित  हुई । विद्यालय को समाज का सहयोग प्राप्त हुआ, अभिभावक श्री ओम अग्रवाल जी द्वारा विद्यालय को 01 टेबिल 01 कुर्सी और 01 बेंच प्रदान की गई । व्यवसायी श्री कैलाश अग्रवाल द्वारा विद्यालय को टाट पटिट्‌यां प्रदान की गई । श्री कृष्णकांत जी साकल्ले द्वारा  वागदायनी माँ सरस्वती जी का एक फोटो विद्यालय को भेट किया गया। श्रीमती अरुणा साकल्ले जो उस समय टिमरनी विद्यालय में आचार्य थी, उन्हें सन् 1981 में कक्षा उत्तरार्द्ध पढाने हरदा भेजा गया ।

अधिकारियों के प्रवास

सन् 1982 से ही सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान भोपाल से विद्याभारती के अधिकारियों का प्रवास प्रारंभ हुआ । जिनमें श्री रोशनलाल सक्सेना, श्री शिवराव  बक्शी, श्री कप्तान सिंह सोलंकी एवं श्री भाउसाहब भुस्कुट आदि थे।

प्रथम सांस्कृतिक कार्यक्रम

26 जनवरी 1983 को विद्यालय ने नगर के समक्ष अपनी प्रथम प्रस्तुती एक सांस्कृतिक नृत्य के रूप में दी। जिसे कार्यक्रम में द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ । कक्षा दूसरी एवं तीसरी के भैया बहिनों को इस प्रस्तुती के लिये खूब सराहना प्राप्त हुई । सन् 1982 में नागपुर शहर से भैया बहिनों के आवागमन के लिये एक रिक्शा बुलाया गया, इस रिक्शे में बैठकर विद्यालय आते जाते मैया बहिन गीत गाते थे “चन्दन  है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है’’ यह गीत नागरिकों को बहुत प्रेरणा देता था।

विद्यालय  का प्रथम भवन निर्माण

सन् 1983 में गुलजार भवन के पीछे शासकीय भूमि लीज पर प्राप्त करने के लिये नगर पालिका में आवेदन दिया गया । इसी भूमि पर पाँच कमरों का निर्माण कराया गया, जो 1985 में बनकर तैयार हुआ । सन् 1985 में इस भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में प्रतिष्ठान के सचिव श्री कप्तानसिंह सोलंकी और श्री शिवराव वक्शी उपस्थित थे । इस भवन का नाम राणा प्रताप भवन रखा गया जबकि गढ़ी विद्यालय शिवाजी भवन कहलाता था । शिवाजी भवन के व्यवस्थापक श्री शालिगराम जी अग्रवाल और प्रताप भवन के व्यवस्थापक श्री केसरीलाल जी पांडे रहे थे।

विद्यालय  भवन पर संकट

01 जुलाई 1988 को विद्यालय विरोधी मानसिकता के लोगों द्वारा विद्यालय भवन तोड़ने का प्रयास हुआ । कुछ टीन भी उखाड़ दिये गये । किन्तु समिति सदस्यों भैया बहिनो और अभिभावकों के तीव्र विरोध के कारण उन्हे यह विध्वंश रोकना पड़ा ।

प्रथम बोर्ड परीक्षा परिणाम

सन् 1987 में जिला स्तरीय बोर्ड परीक्षा में विद्यालय की बहिन कु.प्रियंका अग्रवाल ने होशंगाबाद जिले में प्रथम स्थान प्राप्त कर विद्यालय को गौरवान्वित किया था । इसी वर्ष छात्र अरविंद सुभेदार ने भी प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त किया था । इस सफलता से प्रेरित होकर बाद के वर्षों में प्रतिवर्ष भैया बहिन प्रावीण्य सूची में आते रहे विद्यालय की ख्याति और छात्र संख्या लगातार बढ़ती रही । सन् 1985, 86, 87, 88 में कक्षा पाँचवी उत्तीर्ण करने वाले भैया बहिनों को आगामी अध्ययन के लिये अन्य विद्यालयों में जाना पड़ता था ।

समिति का पंजीयन

दिनांक 20 फरवरी 1987 को विद्यालय का पंजीयन फर्म एवं सोसायटी द्वारा विद्यालय की संचालन समिति का नाम हरदा नगर बाल विकास समिति रखा गयाए जो वर्तमान तक है।

कक्षा छठवीं का प्रारंभ

सन् 1989-90 का बेच जैसे ही पाँचवी में आया कक्षा छटवी खोलने हेतु विचार शक्ति तीव्र हो गई उस वर्ष भी कक्षा पाँचवी का परीक्षा परिणाम शानदार रहा था । इसी बैच के साथ 01 जुलाई 1990 को कक्षा छटवी प्रारंभ की गई । विद्यालय में स्थानाभाव के कारण शासकीय मिडिल स्कूल के सामने श्री रामधार विश्नोई जी के मकान में कमरे किराये पर लेकर कक्षा छटवी प्रारंभ की गई । श्री अनंत कुमार वैद्य, श्रीमती कविता शर्मा(तिवारी) और श्री मदन गोपाल व्यास इस माध्यमिक विभाग के प्रथम आचार्य थे । इस भवन में आठ माह कक्षाएं संचालित हुई ।

विद्यालय का भवन निर्माण

सन् 1991-93 तक प्रताप भवन विद्यालय के पीछे विद्यालय का भवन निर्माण की संकल्पना आकार ले रही थी । जिसके लिये नगर में धन संग्रह का कार्य भी जोर शोर से प्रारंभ हुआ, जिन श्रेष्ठियों ने बड़ी धनराशि दान की उनके नाम निम्नलिखित है।

1- श्री गोपालदास बद्रीप्रसाद अग्रवाल (फर्म गनपत पन्नालाल) द्वारा कक्ष क्रमांक 10 गोपाल भवन के निर्माण हेतु 25001/- रूपये का सहयोग प्राप्त हुआ।

2- श्री प्रेमनारायण खेमचंद जी अग्रवाल द्वारा प्रेमभवन के निर्माण हेतु 10001/- रूपये का सहयोग प्राप्त हुआ।

3- श्रीमती जानकी देवी शालिगराम द्वारा उनके पुत्र स्व. श्री मधुकरराव, रामचंद्र राव शालिगराम की स्मृति में मधुभवन का निर्माण कराया।

4-श्रीमती सुशीलारानी मौर्य द्वारा उनके पौत्र हिमांशु प्रतापसिंह के जन्म के उपलक्ष्य में मौर्य भवन का निर्माण कराया।

5- टिम्बर मर्चेट एसोसिएशन द्वारा विद्यालय में कक्ष निर्माण के लिये 31001/- रूपये का सहयोग प्रदान किया गया।

6- स्व. श्री भीकाजीराव बेलापुरकर की स्मृति में उनके पुत्र श्री गोविंद भीकाजी बेलापुरकर के द्वारा 33000/- रूपये की राशि दान की गई तथा कक्ष का निर्माण हुआ।

7- सन् 1993 में विद्यालय में सनातन सभा कक्ष का निर्माण पूर्ण हुआ।

हम यह कह सकते है कि सरस्वती विद्या मंदिर के भवन के निर्माण के साथ ही इस क्षेत्र का काया पलट हो गया, यह क्षेत्र हरदा नगर का सबसे उपेक्षित और गंदा क्षेत्र था । पूरे समय निस्तार का जल यहां भरा रहता था मरे हुए जानवर यहां फेंके जाते थे । सामने विद्युत मंडल की पोल फेक्टरी थी लेकिन विद्यालय बनते ही यह नगर का सबसे स्वच्छ क्षेत्र बन गया।

हाई स्कूल का शुभारंभ

सन् 1993-94 में विद्यालय को शालेय शिक्षा विभाग की और से कक्षा नवमी प्रारंभ करने की अनुमति प्राप्त हुई । कक्षा नवमी प्रारंभ हुई । उच्चतर विभाग में प्राचार्य श्री संजय उपाध्याय के साथ श्रीमती कविता तिवारी एवं श्री संदीप बंसल आचार्य थे । सन् 1994 में बेलापुरकर जी के घर के सामने किराये का एक कमरा लेकर संगीत कक्षा एवं कार्यालय संचालित किया गया।

उप समितियों का संविलयन

सन् 1995-96 तक विद्यालय का संचालन चार पृथक-पृथक उप समितियां करती थी । प्रताप भवन प्राथमिक विभाग, शिवाजी भवन प्राथमिक विभाग, श्रीराम भवन माध्यमिक विभाग तथा कक्षा 9 और 10 के लिये अलग अलग उपसमितियां थी । 1996 में चारों समितियों का संविलयन कर श्री कृष्णकांत साकल्ले जी की अध्यक्षता में एक ही समिति सारे विद्यालय का मार्गदर्शन करती थी। जिसके सचिव श्री कृष्णमुरारी अग्रवाल थे।

प्रथम तल का निर्माण

सन् 1996-1997 में विद्यालय के प्रथम तल का निर्माण पूरा हुआ इस तल पर 09 कक्ष एवं एक सभा भवन बनाया गया। सभा भवन का नाम श्रद्धेय दीनदयाल उपाध्याय जी के नाम पर दीनदयाल कक्ष रखा गया।

नवीन भवन निर्माण की संकल्पना

सन् 2001 में विद्यालय में हायर सेकण्डरी विभाग कक्षा ग्यारहवीं प्रारंभ करने के लिये आवेदन दिया गया तथा कक्षा प्रारंभ की गई । गुलजार भवन के पीछे स्थित विद्यालय भवन वृहद छात्र संख्या के कारण विद्यालय संचालित करना संभव नहीं हो पा रहा था। इसीलिये भूमि क्रय कर विद्यालय का नवीन भवन बनाने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की गई । इस हेतु धनराशि प्राप्त करने के लिए  वापसी योग्य सहयोग राशि शीर्षक से एक योजना बनी इस योजना के सूत्रधार श्री प्रभाकरराव जी भागवत श्री विष्णुप्रसाद तंवर एवं श्री गोविंद जी रमाणी थे । इस योजना के अंतर्गत सभी अभिभावकों को 1000 रूपये की सहयोग राशि बिना ब्याज के ऋण के रूप में विद्यालय को देनी थी। इस योजना के परिणाम स्वरूप एक बड़ी राशि विद्यालय को प्राप्त हुई ।

नवीन भवन का निर्माण

संचालन समिति के तत्कालीन सदस्य श्री पुरुषोत्तम जी पटेल के प्रयासों से नगर के उत्तर में संकट मोचन हनुमान मंदिर के सामने पाँच एकड़ भूमि 18 लाख 80 हजार रूपये में कृषक श्री लक्ष्मीनारायण पटेल जी से क्रय की गई।  इस भूमि पर भवन निर्माण के लिये भूमि पूजन का कार्यक्रम 17 फरवरी 2002 को संपन्न हुआ । इस कार्यक्रम में मध्यक्षेत्र के संगठन मंत्री माननीय श्री यतीन्द्र जी शर्मा उपस्थित थे ।

सन् 2006 में भवन का प्रथम तल बनकर तैयार हुआ । 09 जुलाई 2006 को इस भवन का लोकार्पण कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसर कार्यवाह माननीय श्री सुरेश जी सोनी, के मुख्य अतिथ्य में संपन्न हुआ।

इस भवन में कक्षा 09 से 12 तक की कक्षाएं सन् 2006-07 में स्थानांतरित की गई । सन् 2008 में भैया बहिनों के आवागमन के लिये तीन बसे क्रय की गई । सन् 2008 तक प्रथम तल जिसमें 11 कक्षा कक्ष एक वंदना कक्ष तथा 04 बड़े सभाकक्ष थे । का निर्माण पूर्ण हुआ।

शिशुवटिका भवन

सन् 2009 में नगर पालिका के स्वामित्व वाला प्राथमिक विद्यालय के सामने वाला भूखंड 2003 से प्रारंभ की गई प्रक्रिया के बाद उच्च न्यायलय के फेसले से समिति को प्राप्त हुआ । इसी भूमि पर पृथक शिशु वाटिका भवन के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। वर्ष  2011-12 में प्राथमिक विद्यालय के पाँच पुराने कमरों को तोड़कर शिशु कक्षा के लिये उपयोगी पाँच नए कमरे बनाएं गये ।

स्मार्ट क्लास सिस्टम

सन् 2000 में अत्याधुनिक तकनीकी शिक्षा के उपकरण विद्यालय में लगाने की उददेश्य से एडूकॉम स्मार्ट क्लास विद्यालय के तीन  सभा कक्षों में लगाया गया । इन कक्षों के नाम प्रथ्वी,अग्नि, नाग, और त्रिशुल मिशाइलस के नाम पर रखा गया ।

पहुंच मार्ग का निर्माण

सन् 2008-09 में हरदा के पूर्व विधायक एवं पूर्व राजस्व मंत्री माननीय कमल जी पटेल द्वारा हरदा इन्दौर से विद्यालय भवन तक पहुंच मार्ग 800 मीटर सीसी रोड़ का निर्माण किया गया।

कम्प्यूटर प्रयोगशालाएं

प्राथमिक विद्यालय में 21 कम्प्यूटरों से युक्त कम्प्यूटर प्रयोगशाला का निर्माण 08 अगस्त 2001 को किया गया। इसके उद्‌घाटन कार्यक्रम में हिमांचल प्रदेश के राज्यपाल मान. कप्तानसिंह जी सोलंकी उपस्थित थे । नये भवन में 2014-15 में 40 कम्प्यूटरों से युक्त एक कम्प्यूटर प्रयोगशाला बनाई गई ।

उल्लेखनीय परीक्षा परिणाम

सरस्वती विद्या मंदिर हरदा का नाम जिलाए संभाग और प्रदेश की प्रावीण्य सूचीयों में प्रतिवर्ष आता ही है, परंतु सन् 2005-06 में हाई स्कूल प्रमाण पत्र परीक्षा कक्षा दसवी में एक साथ तीन छात्रों ने मध्यप्रदेश की प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त कर विद्यालय को गौरवान्वित किया। इनके नाम निम्नलिखित है, नीतेशसिंह सिकरवार (चतुर्थ स्थान) राहुल  गौर (चतुर्थ स्थान) और मनोज सिंह चौहान (षष्टम स्थान)

सन् 2015-16  में विद्यालय की छात्रा कु. ज्योति विश्नोई ने हायर सेकेण्डरी परीक्षा परिणाम में मध्यप्रदेश की प्रावीण्य सूची में मध्यप्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त कर पूरे जिले को गौरवान्वित किया ।